इतना टेंशन फिक्र का बाजार नहीं था
सुकून चैन सब था बस रोजगार नहीं था
मजबूरियों ने मुझको शहरी बना दिया
वरना गांव कभी छोड़ने का विचार नहीं था
गांव की सादगी में छुपी है ये रौनक,
प्रकृति का अनमोल उपहार है
गांव के बगीचे की ये खूबसूरत हरियाली,
थका हुआ मुसाफिर भी मुस्कुरा उठता हैं।
जब किसी पेड़ की छांव उसे छू जाती हैं।
गर्मी में सुकून अपने गांव में ही हैं।
अपने गांव के पेड़ो के छांव में है।
शहर में सुविधाएं हो सकती है
लेकिन वो शांति और सुकून
जो गांव के पेड़ो की छांव में मिलती हैं।
वो और कहीं नहीं मिल सकता है।
शहर में कितना भी बड़ा घर बना लो।
लेकिन जो सुकून गांव की झोपड़ियों में है।
वो दुनिया में और कहीं भी नहीं है।
गांव का हर तस्वीर अपना सा लगता हैं।
हर गांव अपना गांव सा दिखता है।
जिस घर से बाहर जाने का बहाना ढूंढते थे।
आज उसी घर जाने के लिए दिल तरसता है।
जिन्दगी गुजर रही हैं किराए के मकानों में,
वैसे एक बड़ा सा घर हैं मेरा,मेरे गांव में,
ऐसा खूबसूरत नजारा और वातावरण देखकर
हर कोई प्रकृति के प्रति मोहित हो जाता है।