कौन नाता गांव से तोड़ना चाहता है।
कौन मुंह अपनो से मोड़ना चाहता हैं। मजबूरिया ले जाती हैं परदेश में वरना
अपना गांव कौन छोड़ना चाहता हैं।
मेरे गांव के खेत से,
पलता है तेरे शहर की पेट।
मेरा नादान गांव
अब भी उलझा हैं किस्तों में,
कोई ट्रैफिक नहीं,कोई भीड़ नहीं।
बस सड़क,हवा और घर जैसा एहसास।
एक शांत जगह जहां समय धीमा हो जाता है।
और साधारण चीजें सबसे ज्यादा खुशी देती हैं।
असली सुकून का जगह ये है।
इन खेतों के बीच बना ये घर,
इन नजरों को देखकर दिल
करता है यही पर ठहर जाएं।
गांव में सांझ के समय,
अपने दोस्तों के साथ खेतों में,
घूमने में एक अलग सुकून मिलता है।
ये बसंत का मौसम,
ये रंग बिरंगी फूलों की खुशबू,
खेतों के बीच बना घर,ये नजारा देखकर,
यहां बार बार जाने को दिल करता हैं।