ना दादी रही ना मिट्टी का घर,
और ना वो बचपन की सर्दियां,
गांव का ऐसा दृश्य पुराने,
समय की याद को ताजा कर जाती हैं।
गांव में बीते हुए बचपन का,
वह सुनहरा पल याद आ जाता है।
जहां बचपन बीता वो,
घर ढह गया इसी इंतेजार में,
कभी आयेगा अपना बचपन याद करके,
गांव छोड़कर शहर जाने वाले लोग,
ये वही आम का पेड़ हैं बचपन में,
जिसपर चढ़कर हम आम तोड़ा करते थे।
अब ये सुख चुका हैं जरा सोचो वो,
बचपन के दिन कितना सुकून मिलता था।
आंगन और दुवार वाला जमाना अब कही खो गया हैं।
आज इस घर को देखा तो बचपन का जमाना याद आ गया।
आज भले ही इनकी कीमत कम हो गई हैं लेकिन मुझे आज भी चकाचौंध वाले घरों से ज्यादा सुकून इसी में दिखता है।